Sunday, March 8, 2009

८ मार्च महिला दिवस पर


गम से डाले हैं फेरे दिलवर की तरह

खुशियां छूटी हैं, हमसे पीहर की तरह

देखा परखा सभी ने अपनी अपनी नजर

बजते रहते हैं, हम महुअर की तरह।

-२-

चाहो तो तुम देश की तहरीर बदल दो

चाहो तो तुम देश की तस्वीर बदल दो।

नारी! शक्ति हो संसार की भूलो न कभी ये

चाहो तो तुम देश की तकदीर बदल दो॥

Monday, February 16, 2009

प्रभु की कृपा

दोनों अस्थिर

प्रीति व प्रियतम

नाम जगत।


प्रभु की कृपा

सत्संग की प्राप्ति

संग से ज्ञान॥

Wednesday, January 28, 2009

लगाते हो दोष मुझ पर

जब भी तुम

उंगली उठाकर

लगाते हो दोष

मुझ पर

तुम्हारी

मुड़ी हुई उंगलियां

करती हैं इशारा

तुम्हारी ओर

कि.... तीन गुना

कलुष भरा है

तुम्हारे अंदर

मुझसे ज्यादा॥

Wednesday, January 21, 2009

जीवन की माया हो तुम


जीवन की माया हो तुम

माया की छाया हो तम

डाल आवरण अपना सब पर

करते हो भ्रमित भी तुम ॥

जीवन का लेखा हो तुम

हर लेखा का सार भी तुम

देकर अपनी दया दृष्टि को

पार कराओ भव सागर तुम॥
जीवन की
गीता हो तुम

गीता की वाणी हो तुम

बनकर शब्दों की शक्ति

दे देते हो मुक्ति तुम॥

Monday, January 19, 2009

हर ज्ञानी का ज्ञान भी तुम


जीवन का अज्ञान भी तुम

हर ज्ञानी का ज्ञान भी तुम

एक किरण देकर अपनी

करते तम का नाश भी तुम ॥

जीवन की बगिया हो

तुमबगिया के माली भी तुम

पावन जल से कर सिंचित

खूब बढ़ाते रहते तुम॥

Sunday, January 18, 2009

घूम रही पृथ्वी पर, होकर कैसी निर्भय ?

पुरु रवा की व्यथा से साभार प्राप्त रचना

कटि-केहरि, उच्छ्रंखलता का देती परिचय,

घूम रही पृथ्वी पर, होकर कैसी निर्भय ?

मधुर-मधुर मुस्कान, फड़कते होठ निरंत्तर,

भ्रमण कर रही रति, मानो इस जगतीतल पर।

शैल नितम्बी अलसाये डग, पगपग बढ़ती,

या कि भुवन चौदह की, शोभा भव्य, सिमटती॥

Friday, January 16, 2009

जो मीठी गज़लें कहते हैं, हम उनके दिल में रहते हैं.


जो मीठी गज़लें कहते हैं।

हम उनके दिल में रहते हैं॥

दूर देश में तडपे कोई]

हम भी तो आहें भरते हैं।

लोग हमें लांछित करते]

हमघावों पर मरहम भरते हैं॥

सुख सुविधा से मोह न हमको]

जन्म जन्म पीडा वरते हैं॥

जगत हमारी निन्दा करता।

हम जग को रसमय करते हैं॥

विरह वेदना आहें आंसू]

कितनी दौलत हम रखते हैं।

जगत कहे दीवाना हम तो]

भाव समाधी में रहते हैं।

कैसा मिलना और बिछुडना\

हम तो बस क्रीडा करते हैं॥

Thursday, January 15, 2009

विकल कवि की कविता


कर्णफूल श्रवणों में, मकराकृति विशाल थे,

मनुज, सुरों हित फैले, मानो मोहजाल थे।

मस्तक मणियों खचित, रत्नमाला से शोभित,

टीका अति शोभायमान, छवि मधुर अपरिमित॥

प्रस्तुति : ॐ प्रकाश विकल

Tuesday, January 13, 2009

बगिया के माली भी तुम


जीवन का अज्ञान- भी तुम

हर ज्ञानी ज्ञान भी तुम

एक किरण देकर अपनी

करते तम् का नाश भी तुम।

जीवन की बगिया हो तुम

बगिया के माली भी तुम

पावन जल से कर सिंचित

खूब बढाते रहते तुम।

Monday, January 12, 2009

बनते दिल की धड़कन तुम॥


जीवन की कश्ती हो तुम

कश्ती की पतवार भी तुम।

अश्रयहीन का बन संबल

पहुंचाते मंजिल पर तुम॥

जीवन की मस्ती हो तुम

मस्ती की बस्ती भी तुम।

भरकर हर प्राणी में नेह

बनते दिल की धड़कन तुम॥

Friday, January 9, 2009

मैं समय हूं

मैं समय हूं

गतिवान

चिरन्तन

सर्वशक्तिवान।

मूर्ख हो तुम,

चाहते हो

मुझे

बांधना।

रेत सम

मुटठी से तुम्हारी

फिसल रहा हूं

शनै शनै।

और

तुम्हें

कुछ

ज्ञात भी नहीं॥

ईश का रूप मानवीय स्वरूप

ईश का रूप

मानवीय स्वरूप

चिन्तन-रूप ।


दुःखों का मूल

संसार से आशक्ति

आसक्ति ? त्याज्य ।

चीर हरण

सहज मोह भंग

प्रभु से पर्दा ?


अज्ञान नाश

शब्दों से न सत्य से

सत्य ? प्रकाश ।

Wednesday, January 7, 2009

यह निर्भर तुम्हारे ऊपर.


हे सागर

तुम्हीं से उत्पन्न

एक लहर हूँ

तुम्हीं में विलीन

तुम्हीं में तल्लीन

चाहो तुम

दे सकते हो

एक पहचान

अन्यथा

मिटा दो

मेरा अस्तित्व

यह निर्भर

तुम्हारे ऊपर.

Monday, January 5, 2009

Sunday, January 4, 2009

प्रवेशिका


मेरा पहला हिन्दी ब्लॉग

इस पर प्रकाशित होंगी

मेरे ह्रदय से निकालने वाली

भावोक्तियाँ

पाठक करेंगे

उन भावों का

मूल्यांकन